जन्म और मृत्यु

स्थूल शरीर नश्वर है लेकिन सूक्ष्म शरीर ना कभी मरा है उसकी मृत्यु असम्भव है, वह हमारे अनेक जन्मों का ज्ञान लिए हुए है वह ही हमारा सच और अस्तित्व है लेकिन हम ना उसे जान सकते, हमें सब पता है जन्म और मृत्यु के पहले और बाद में क्या होता है । कारण शरीर दोनों का निर्माण करता है। सूक्ष्म शरीर को अनुभव ध्यान विधि से किया जा सकता है और आध्यात्मिक तरीके से। देखा जाए तो हम तो कभी मरे ही नहीं , स्थूल शरीर बदल रहे हैं। भौतिक विज्ञान का सिद्धांत भी कहता ऊर्जा ना उत्पन्न की जा सकती ना नष्ट करती जा सकती है, आध्यात्म ही एक मात्र साधन है जो ऊर्जा को नियंत्रित कर सकता है, प्रयोग से सम्भव नहीं है।। आत्मा को ज्ञान से समझ सकते हैं बुद्धि से नहीं। ज्ञान वह है जो हमारे अन्दर छिपा है, बुद्धि तो तर्क करती है।। हमारा स्वयं को जानना बहुत मुश्किल सा लगता है। जब इस संसार में आकर स्वयं को जानने की कोशिश नहीं करनी तो शायद हम उत्पत्ति के कारणों से भटक गये है, मुझे लगता है मृत्यु के समय इस बात का दुःख जरूर होता होगा, कैसे संसार में उलझते चले गए जब सत्य सामने होगा स्थूल और सूक्ष्म शरीर दोनों रूबरू होंगे कुछ पल के लिए तब ...

मेरे अनुभव

मुझे लगा कि जीवन की उत्पत्ति और अंत एक चुम्बक की तरह हैं, जो एक साथ जन्म लेते हैं और खत्म भी हो जाते हैं। मानव जीवन सभी योनियों में सर्वश्रेष्ठ है, क्योंकि हर योनि में कुछ न कुछ कमी रह जाती है, जो धीरे-धीरे दूसरी योनि में पूर्ण होती है। जब मानव जीवन मिलता है, तब हम सोच-समझ सकते हैं। मनुष्य का मन जरूर पूछता है—क्यों और कैसे? कोई इस पर ध्यान देता है, कोई नहीं। वैसे, यह जीवन हमें साकार रूप से निराकार को समझने के लिए ही मिला है। दुख और सुख हमें जीवन व्यतीत करने के लिए दिए गए हैं। अगर दुख में नींद आ रही है, तो समझिए कि दुख सामान्य है; यह समय के साथ दूर हो जाएगा। मेहनत करें, हो सकता है अच्छा परिणाम न मिले, लेकिन जो मेहनत के बाद परिणाम का इंतजार करता है, वह मन किसी सफल व्यक्ति से भी ज्यादा आनंद लेता है। जैसे ध्यान में जो खुशी मिलती है, उसे वही समझ पाता है जो अनुभव करता है। ध्यान में वह हर रिश्ता तोड़ देता है, सब छोड़ देता है, चिंता से मुक्त हो जाता है और चाहता है कि मैं खुद को जान पाऊं—यही उसे खुशी देता है। हर मनुष्य अपनी जगह महान है, क्योंकि वह विविधता बनाए रखता है। मैं भी दुखी बहुत रहती हूँ, पर समझ नहीं पाती कि इस दुख को दुख मानूं या सुख—यही जिंदगी है, एक प्रक्रिया, जो न जाने कब से चली आ रही है। सोचो तो रहस्य लगती है, दूर से देखो तो हास्य—जिसमें कलाकार बदलते हैं, किरदार खूब निभाते हैं, और दृश्य को सच मान लेते हैं। एक बात जो मुझे लगती है, हर काम के लिए परिस्थितियाँ अनुकूल चाहिए। वैराग्य लेना भी सबसे कठिन है आज के समय में। ईश्वर प्राप्ति इस तरह वैराग्य लेकर तो असंभव है। नियमों में बदलाव जरूरी है। वह समय था, जो हम शास्त्रों में पढ़ते हैं, जब किसी एक ने आत्मज्ञान का अनुभव किया होगा। पर उस समय की परिस्थितियों में वर्तमान को देखें, तो मुझे असंभव लगता है। अब सुख और दुख की परिभाषा बढ़ती जा रही है, और मैं समझ नहीं पा रही कि आत्मज्ञान जरूरी है या जीवन की उपलब्धियाँ। जीवन में हम कदम बढ़ाते हैं—बाल्यकाल से किशोरावस्था, किशोरावस्था से गृहस्थ जीवन। अब मुझे लगता है कि जीवन अपनी परिभाषा बता रहा है। मैं ऐसा रास्ता बनाता हूँ कि जिससे मैं कट जाऊं—इसका मतलब यह नहीं कि खुशी से कटूँ या दुख से। मैं तो जीवन हूँ। जब मैं होता हूँ, मेरा अपना गुरूर होता है। एक समय ऐसा होता है, जब मैं बहुत महत्वपूर्ण लगता हूँ, लेकिन जब पूरा हो जाता हूँ, तो बहुत महत्वहीन—एक कहानी बन जाता हूँ, जो जल्द ही लुप्त हो जाती है। हाँ, मानती हूँ, आत्मा में बहुत ताकत और स्मृतियाँ हैं। उसे उत्पत्ति और अंत का पता है। वह इतनी शक्तिशाली है कि शरीर में रहते हुए भी यह नहीं चाहती कि मस्तिष्क उसके रहस्य को जान ले। मुझे लगता है, मानव ज्ञानेंद्रियों से चलता है। एक ऐसी ज्ञानेंद्रिय है, जिसका उपयोग हम नहीं कर पाते। हम भूल गए कि पाँचों ज्ञानेंद्रियों का उपयोग कर उसे जगाना है। यह पाँचों हमें बाहरी जगत की ओर ले जाती हैं, पर यदि हम चाहें, तो इन पर नियंत्रण रखकर आत्मज्ञान की ओर बढ़ सकते हैं। बस इतना याद रखना है कि यह ज्ञान हमारी अंतर्निहित क्षमता का विकास है, जो हमारे अंदर छिपा है और हमें उसे अर्जित करना है। यह लेखन भी एक माध्यम है, जो मेरे विचारों को व्यक्त कर रहा है। आप सब इसे पढ़ रहे हैं, जीवन की विविधता को अनुभव कर रहे हैं, और अपने मस्तिष्क में कहीं न कहीं दबाव डाल रहे हैं। इसे पढ़कर सब तर्क करेंगे—यह सही है या गलत। यही बुद्धि है—तर्क करना। हर कोई अपनी बुद्धि से इसका अर्थ समझेगा। किसी को ध्यान सही लगेगा, किसी को गलत। यही सही और गलत इस दुनिया को रोचक बनाए रखते हैं। जीवन कब कट जाता है, पता ही नहीं चलता। यह दुनिया बहुत प्यारी है। हर प्राणी महत्वपूर्ण है, जो इस आकाश तले अपनी उपस्थिति देकर अप्रत्यक्ष रूप से बंधा हुआ है। — इला

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